जिम्मेदार कौन है ईश प्रकृति के इस हनन का
तमाशा कौन बना रहा जगमगाते इस चमन का।
इंसानों ने दैत्य बनकर जो ये कुटिलता दिखाई है
प्रकृति के गर्भ को उजाड़ बस हिंसा ही फैलाई है।
पंछियों कि चहचहाहट भी अब गुप्त हो चुकी है
मानवता भी अंधेरे के पिंजरे में लुप्त हो चुकी है।
आज हवाओं में भी जहर का प्रभाव दिख रहा है
बिना प्रकृति के ये जीवन भी अभाव दिख रहा है।
ये मूढ़ता इंसानों कि आज डूबा रही है संसार को
सबकी सोच यही रह गई बढ़ाएं कैसे व्यापार को।
प्रकृति है तो जीवन है, स्वास्थ्य है, खुशहाली है
अगर प्रकृति नहीं तो यह संपूर्ण संसार खाली है।
Mukesh Negi