है वह ऐसा पिता
हार जाता है वह संघर्षों तले,आह भी ना निकाले है, वह ऐसा पिता।कैसे आंगन की हरियाली, इतनी हरी मां तो है,पर संभाले जड़ है पिता।जोड़ती हूं खुद की कमाई,कौड़िया उतनी ही कौड़ी में,संभाले घर है पिता।हार जाता है वह संघर्षों तले, आह भी ना निकाले है, वह ऐसा पिता।By रिचा पाठक मैं रिचा घनश्याम पाठक…