बेटी
वैसे तो लड़कियाँ सब कुछ कर लेती हैं, चाहे घर का काम हो या बाहर का, लेकिन आज भी उन्हें पढ़ाई का अवसर नहीं मिलता। यह कहानी भी इसी पर आधारित है।
एक पिता की दो संतानें थीं, एक बेटी और एक बेटा, लेकिन वह दोनों में काफी भेदभाव करता था। जहां वह बेटे को पढ़ने के लिए महंगी से महंगी किताबें देता था, वहीं बेटी को पढ़ने के लिए एक पेंसिल तक नहीं देता था। वह उसे बहुत रोकता-टोकता था और कहता था, “तुम लड़की हो, बाहर नहीं जाओगी। तुम पढ़कर क्या करोगी?”
लेकिन बेटी की माँ ने बड़ी मुश्किल से पैसे इकट्ठे किए और अपनी बेटी को पढ़ाया। इस तरह समय बीतता गया और जिस बेटे को माँ-बाप ने इतनी मेहनत से पढ़ाया था, वह केवल एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी करता था। धीरे-धीरे घर में पैसों की तंगी होने लगी, और बेटा सभी की जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहा था।
एक दिन वह इन सब से तंग आकर अपने बूढ़े माँ-बाप को खूब बेइज़्ज़त कर घर से निकाल दिया। उसने कहा, “आपका खर्चा हम नहीं उठा सकते, हमसे नहीं होगा। आप मेरे घर से निकल जाइए।”
माँ-बाप रोते हुए घर से बाहर निकल गए। तभी वहां एक लड़की, जो उस शहर की नई IAS ऑफिसर थी, आई और उनके पैरों में गिर गई। वह बोली, “माँ-पापा, आपकी वजह से ही आज मैं यहाँ हूँ। और आप सिर्फ एक जगह के लिए रो रहे हैं?”
वह उन्हें अपने साथ अपने घर ले गई। तब उसके पिता को एहसास हुआ और उन्होंने कहा, “बेटा, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मैं सोचता रहा कि तुम्हें पढ़ा कर क्या करूँगा, कहीं तुम कुछ गलत न कर दो और मेरी इज़्ज़त पर आँच न आए। लेकिन आज तुम तो मेरे बुढ़ापे का सहारा बन गई हो। आज मैं समझ गया हूँ कि लड़की और लड़के में कोई फर्क नहीं होता।”
और फिर वे तीनों खुशी-खुशी रहने लगे।
नारी ही शक्ति है, वही समृद्धि है, वही सद्बुद्धि है। उन्हें अवसर दो, वे भी इस देश की विधि हैं।