” अब शिकायत करना बंद करते हैं, और संघर्ष करना शुरू करते हैं “
कब तक आंसुओं से पन्ने भरेंगे ,
कब तक दर्द की दास्तां कहेंगे ।
अब वक्त है शिकवा छोड़ने का ,
अब वक्त है खुद को मोड़ने का ।
कब तक कहे – ' हम तो औरत हैं ' ,
कब तक कहे – ' हमबेबस मूरत हैं ' ।
क्यों हर बार आंखें नम रहे ?
क्यों सवाल जुबां से कम रहे ?
कह दो समाज से–
हमें अब सहना नहीं आता ,
बंद कमरों में दम घुटना नहीं भाता ।
बोल उठी है चूप्पियो की दहलीज ,
अब डर के साए में रहना नहीं सुहाता ।
घूंघट की ओट से झाकती थी कल ,
अब आंधियों से आंख मिलाना भाता।
अब पिंजरे में खुद को रखना नहीं आता ,
अब मुश्किलों से कतराना नहीं आता ।
हमें अब खुद की कहानी लिखनी है ,
अब औरों के शब्द दोहराना नहीं आता ।
कांटों से कह दिया हमने बेखौफ ,
अब दर्द से रिश्ता निभाना नहीं आता।
अब शिकायत करना बंद करते हैं,
और संघर्ष करना शुरू करते हैं।
क्योंकि हम वही हैं ,
जो दुर्गा बनकर महिषासुर का वध करती हैं ,
तो कभी सीता बन, अग्नि परीक्षा भी सह लेती हैं ।
पर अब अग्नि में नहीं जलेंगे ,
अब खुद अग्निबन जलेंगे ।
अब जहां अंधेरे हो , हम दिया जलाएंगे ,
जहां सन्नाटा हो, वहां आवाज उठाएंगे ।
अब रानी लक्ष्मीबाई साहूंकार बनेंगे ,
अब सावित्रीबाई की कलम सा तलवार बनेंगे ।
तो चलो ,
अब शिकवा नहीं समाधान लिखते हैं ,
अब डर नहीं, साहस बनते हैं ।
अब शिकायत नहीं, बदलाव शुरू करते हैं,
अब संघर्ष की गाथा खुद रचते हैं ,
हां ! अब हम शिकायत बंद, संघर्ष शुरू करते हैं !!
By Nilam Patel ( Research scholar )
CSJMU KANPUR ,U.P.