अंतर्मन की चीख
मां का दूध छुड़ाकर जब, अम्मा ने पानी पिलाया था, वो काम कर सके घर भर का, यह सोचकर मुझे रुलाया था, तब चीख रहा था अंतर्मन.. कुछ पूछ रहा था अंतर्मन... भैया को खिलौने नए-नए, मुझको मिलते थे रहे सहे, मक्खन, मलाई, फल, मिठाई, मेरे हिस्से सुखी रोटी ही आई, तब चीख रहा था अंतर्मन.. कुछ पूछ रहा था अंतर्मन.. नया बस्ता, कलम, सलेट, और मीठी किताबों की खुशबू , मेरे हिस्से तो बस आए, झाड़ू कटका और उपलों की बदबू, तब चीख रहा था अंतर्मन.. कुछ पूछ रहा था अंतर्मन.. गुड़िया की विदा करते-करते, जाने कब इतनी बड़ी हुई, एक रोज उढ़ा दी लाल चुनर, और द्वार पर थी बारात खड़ी, तब चीख रहा था अंतर्मन.. कुछ पूछ रहा था अंतर्मन.. चौका चूल्हा, खेत खलिहानों का धूला, पति परमेश्वर, सास ससुर के चरणों में रख देना अपना यह जीवन नश्वर, बस इतना ही मां ने रटाया था, मेरे हित का कुछ न बताया था, तब चीख रहा था अंतर्मन.. कुछ पूछ रहा था अंतर्मन.. जख्मों को छुपाया अपनों से, सच्चाई दफन की सपनों से, घुटती मरती पिसती ही रही, लंगड़ा कर भी घीसती ही रही, तब चीख रहा था अंतर्मन.. कुछ पूछ रहा था अंतर्मन.. क्यों मुझको मानव जन्म मिला, जब मेरा मुंह है सिला सिला, मुझसे तो अच्छे हैं पशु यहां, करते चीत्कार भयंकर हैं, यह सोच सोच कर मरती थी, फिर भी प्रतिरोध ना करती थी, तब चीख रहा था अंतर्मन.. कुछ पूछ रहा था अंतर्मन.. फिर बोली लगी,बेची गई बाजारों में, सब नोच रहे थे अंधियारों में, मन था छलनी, तन था छलनी, मेरे हाल पर रोती थी मेरी करनी, तब चीख रहा था अंतर्मन.. कुछ पूछ रहा था अंतर्मन.. जब वहशियों का मन भर गया फिर उड़ेल दिया मिट्टी तेल मुझ पर, एक अंतिम तिली फिर जलाई थी, प्राणों को अग्नि लगाई थी, तब चीख रहा था अंतर्मन.. कुछ पूछ रहा था अंतर्मन.. सवाल सारी उम्र रहे पर, जवाब ना कभी मिले मुझे, जो भोगा मैंने तिल-तिल कर, क्या था लड़की होने का सिला ? तब चीख रहा था अंतर्मन.. ये पूछ रहा था अंतर्मन.. जयश्री भार्गव इंदौर, मध्य प्रदेश Insta ID: @jaya_rhythem
