कि जिस से जीने का स्रोत है कर देते हो उसी को नष्ट । जिसकी हवाएं कर देती है मन को पावन तुम देते हो उसी को कष्ट। प्रकृति अनमोल है समझो इसका मोल इससे ऊपर कुछ नहीं समझो मेरी ये बोल कि रुक जा थम जा संभल जाओ मत दो ये तकलीफ सोचो तो जरा अगर तुम नहीं रुके तो क्या होगी कल की तक़दीर पूछो तो उन हवाओं से जो तुम्हें पावन कर देती हैं, सोचो तो वो आनंद का जो तुम्हें वह सावन में देती है करके उसे नष्ट तुम्हें क्या मिलता है, देकर उसे कष्ट तुम्हें कितना मिलता है। समझो उसकी भावनाओं को वह तुम्हारे लिए ही जीती है, करो उसकी कदर वह तुम्हारे लिए ही मिटती है। प्रकृति सा ईश्वर भी नहीं, समझो इस बात को कर दोगे अगर उसको नष्ट लाओगे कहां से सांस को। Sakshi Parmar