प्रकृति है तो जीवन है
जिम्मेदार कौन है ईश प्रकृति के इस हनन का तमाशा कौन बना रहा जगमगाते इस चमन का। इंसानों ने दैत्य बनकर जो ये कुटिलता दिखाई है प्रकृति के गर्भ को उजाड़ बस हिंसा ही फैलाई है। पंछियों कि चहचहाहट भी अब गुप्त हो चुकी है मानवता भी अंधेरे के पिंजरे में लुप्त हो चुकी है।…