थी एक बच्ची सीधी साधी सी
करती थी नादानी वो बड़ी प्यारी सी
तोड के जंजीरे वो उरना चाहती थी
आसमान का शेर वो करना चाहती थी
की जिम्मेदारी से इस कदर दबी की मुस्कुराना छौड दिया
इतनी बदनाम हुई की ज़माने को गम बताना छौड दिया
थी अल्बैली वो दीवानी सी
करती थी बतीया बचकानी सी
ह थी एक शेहजादी बरी प्यारी सी
करती हरकते वो नायरी सी
रूह तक काप गई उसकी जब उसे बिना बात का कोसा गया
खाने पर मजबूर हो गई जब उसकी थाली में जहर का ताना परोसा गया ,
अपनो के साथ गैरो ने भी लूटा
न जाने कितना दफा उसका दिल टूटा
रातो में अक्सर उठ उठ कर रोती थी
न जाने कितनी दफा वो चादर बिगोती थी
थी एक नन्ही परी दीवानी सी
सेह न पाई वो गम जमाने की।
हार गई वो खुद से किसी कहानी में
सिमट गई वो अनजाने में
आज भी दिखती अल्बैली वो प्यारी सी
लेकिन कहा करती है
वो बतीया बचकानी सी ।
By Sakshi Parmar