बदल रहा है देश, बदल रहा है दौर।
बदल रहा है मंजर, बदल रहे है लोग।
इस बदलते भारत में क्या क्या बदलते देखा,
कभी इंसान को जलते देखा,कभी इंसानियत को मरते देखा।
आओ सुनाती हूं मै सबको इक दास्तान,
कहानी में कुछ और नहीं है बदलता हिंदुस्तान।
आज दौर है कुछ ऐसा,
हर इंसान बना है ऊंचा।
सत्य को छोड़कर झूठ का साथ देता है,
रिश्तों का कत्ल करके माया जाल को चुनता है।
सत्ता के नाम पे लूट है, पैसे की भूख है।
प्रेम का व्यापार है, धोखे का समाचार है।
गुनाह खुले आम है, ना उठे कोई आवाज है।
सड़को पर पड़ी बेटी की चीखती पुकार है।
कत्ल को आत्महत्या कहे,
जो आवाज उठाए उसे बेघर करे।
कान नहीं सुनते है, आंख नहीं देखती ।
मुंह वहीं बोलता जो राग दुनिया गाती।
आगे तो बढ़ गए हम,
मंगल पे तिरंगा फहराया।
क्या सोच को बदल पाए हम,
जब इंसान ने इंसान को गिराया।
आजादी को तो स्वीकार किया,
क्या दिमाग से आजाद हो पाए हम।
पढ़ लिख लिया बहुत हमने,
जीना न सीख पाए हम।
हर नजर में रावण है,
राम कहां खोजे हम।
भेडियों की भीड़ में ,
खुद को कैसे महफूज करे हम।
प्रकृति भी रूठ गई,
कुदरत का ऐसा कहर हुआ।
ऐसी महामारी आयी,
इंसान इंसान से दूर हुआ।
ना हम रहे ना तुम रहे,
बस मै ही मै जिंदा है।
इसी मै को बनाने के लिए,
हर इंसान यहां दरिंदा है।
इस बदलते दौर में बदल गया सब कुछ,
जीत के लिए इंसान हार गया सब कुछ।
बदल रहा है देश, बदल रहा है दौर।
बदल रहा है मंजर, बदल रहे है लोग।।
Written by Soniya singh
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