Stree Man Ka Bhawar By Richa Kumari
“स्त्री मन का भवर “ क्या स्त्री की व्याख्या उसके मूल से बड़ी है?उसके मन की दुविधा कुछ इस तरह अरी है,झींझक से भरी है थोड़ी डरी डरी है।जमाने को बढ़ता देख आज वह निकल पड़ी है,कभी हौसले से पांव दहलीज को तोड़ता,तो कभी घटनाओं का शोर अंदर से और मोड़ता ।आखिर क्यों स्त्री मन…